शिक्षक पेड़
0कितना कुछ हमको सिखलाते
सचमुच शिक्षक होते पेड़,
मौन बने सब कुछ सह जाते
धैर्य कभी ना खोते पेड़।
धरती से उठ ऊँचे बढ़ते
संघर्षों में पलते पेड़,
रंग बदलती जब जब ऋतुएॅं
साथ समय के ढलते पेड़।
सहते धूप शीश के ऊपर
छाँव और को देते पेड़,
अपना सब कुछ लुटा लुटा कर
मन में खुश हो लेते पेड़।
ज्ञान भरे शिक्षक - से होते
नम्र और उपकारी पेड़,
शिष्य - बीज में अपने गुण के
होते हैं संचारी पेड़।
ये ईश्वर के रूप धरा पर
जीवन के हैं रक्षक पेड़,
सद्भावों को पढ़ा रहे हैं
बिन बोले भी शिक्षक पेड़।
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- सुरेश चन्द्र "सर्वहारा"