सूरज हारा दाव
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सूरज हारा दाव
जिधर देखिए उधर ही, ठण्ड जमाए पाँव
सूरज सड़ता जेल में, हार गया हर दाव
बरफ बरसती मौत बन,,करना कठिन हिसाब
हँसते खिलते चमन में, मिलते नहीं गुलाब
सरिता झीलों की हुई, अरे बोलती बंद
हाथ ठिठुरते कलम के,फिर भी लिखती छंद
सड़कें चौराहे हुए ,बियाबान सुनसान
सन्नाटा बुनने लगे ,जन गन सब हैरान
विद्यालय दफ्तर हुए,हों जैसे शमशान
चपरासी ले घूमता ,छुट्टी का फरमान
ठण्ड कड़क जितनी हुई ,गदगद सेठ जमाल
ऊनी व्यापारी हुए ,मन भर मालामाल
पंछी मारे ठण्ड के,बेबस छोड़ें नीड़
बड़े ताल भोपाल में ,उमड़ी उनकी भीड़
मुख प्रष्ठों पर ठण्ड ने जमा लिया अधिकार
जो उसको छापे नहीं ,बिके नहीं अखबार
नर नारी-पशु मौत का ,लिए ठण्ड सामान
सभी खोखले होग्ए,चिर परिचित अनुमान
ठण्ड डी ढिढोरा पीटती , घूमे सीना तान
घोर प्रदूषण दे रहा ,उसको जीवन दान
Dedicated to
सभी प्रबुद्ध पाठकों को
Dedication Summary
saamyik poem