Shri Gurudev Ka Vanda
0ओम् जय शिक्षा दाता, जय-जय शिक्षा दाता।
जो जन तुमको ध्याता, पार उतर जाता।।
तुम शिष्यों के सम्बल, तुम ज्ञानी-ध्यानी।
संस्कार-सद्गुण को गुरु ही सिखलाता।।
कृपा तुम्हारी पाकर, धन्य हुआ सेवक।
मन ही मन में गुरुवर, तुमको हूँ ध्याता।।
कृष्ण-सुदामा जैसे, गुरुकुल में आते।
राजा-रंक सभी का, तुमसे है नाता।
निराकार है ईश्वर, गुरु-साकार सुलभ।
नीति-रीति के पथ को, गुरु ही बतलाता।।
सद्गुरू यही चाहता, उन्नति शिष्य करे।
इसीलिए तो डाँट लगाकर, दर्शन समझाता।।
श्रीगुरूदेव का वन्दन, प्रतिदिन जो करता।
सरस्वती माता का, वो ही वर पाता।।