तु कुछ भी नही…!!!
0आँसू...
वैसे तो दर्द के कई रुप होते हैं,मगर दर्द कैसा भी हो आँसू बहते ही बहते हैं,हर आँसुओं की अपनी एक अलग दास्ताँ होती है,रोता तो दिल है मगर यें पलकों को भिगोतीं हैं,शायद इसलिए कि साथ हमारे आँखें भी रोती हैं.।
कुछ ऐसा ही एक दर्द यहाँ भी महसूस करें.।
तु कुछ भी नही…!!!
कल रात साथ मेरे
अजीब हादसा हुआ.।
था मैं बिस्तर पर
यूँ ही तन्हा लेटा हुआ
बिछी थी उस पर
यादों में लिपटी
एक पुरानी चादर.।
पड़ चुकी थी कई
सिलवटें उस पर मगर
उस पर पड़ी सिलवटें
कर रहीं थीं दर्द-ए-बयाँ
कई रातों से मैं चैन से
था सो नहीं पाया.।
सोच सोच बारहा
कई दर्द दिल घर कर गयें
दिल में सोयें जज्बात
फिर से जग गयें.।
देखते देखते मन
यादों के कोहरे
में घिर गया.।
याद कर किसी को
आँखों मे मेरे आँसू भर गयें.।
कुछ आँसू निकल कर
मेरे चेहरे पर आ गयें
कुछ बिस्तर को मेरे
दर्द से भिगो गयें.।
समझ न सका रोक
पाया मैं इन बहते
आँसुओं को क्यूँ नहीं.।।
दिया इन्होंने हीं साथ
जब कोई साथ था नहीं.।
आखिर गिरते हुऐ आँसुओं ने
मुझसे पूछ ही लिया.।
निकाल दिया न मुझे उसके लिऐ
जिसके लिए तु कुछ भी नही…!!!
जिसके लिए तु कुछ भी नही…!!!
विनोद सिन्हा-"सुदामा"