वादे से इरादे तक
0"जब मिले थे कभी ये इरादा हुआ
हाथ में हाथ हो तब ये वादा हुआ
उम्र के साथ सब स्वप्न ढलते गए
कुछ पता ना चला खुद को छलते गए
इस हकीकत में हम सबको खलते गए
हैं मिले जख्म जो उनको मलते गए
जख्म की कुछ खबर घाव ज्यादा हुआ
हाथ में हाथ हो तब ये वादा हुआ
जब मिले थे कभी ये इरादा हुआ
मन से मन मारकर मन ये रोने को है
दिल से दिल हार कर दिल ये खोने को है
बूंद से धार कर आंख सोने को है
स्वयं को थार कर कुछ ना बोने को है
था रंगों से भरा अब मैं सादा हुआ
हाथ में हाथ हो तब ये वादा हुआ
जब मिले थे कभी ये इरादा हुआ "
बहुत उम्दा।.