वर्षा की मनमानी
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वर्षा की मनमानी
जब
वर्षा होती है
तो
होती है वर्षा ही
सब क्रियाएं
पड़ जाती ठप्पा
जो जहाॅ है
बहीं
हो जाता है कैद
किसान जोत नहीं पाता हल
चल नहीं पाता
राहगीर अपनी राह
हंसीं की उड़ानें रद्द होती
बटुक पहुंच नहीं पाते
अपनी अपनी पाठशाला
हर पानी डंडे भागता
जब मुसलाधार वर्षा होती
तो
डूब जाते नदी नाले
गांव शहर होजाते पानी पानी
सदियों की विरासतका
पता नहीं चलता
तिनके से बहते बाहन छानी-छप्पर
डूबते-उतराते नर-नारी -जानवर
पेड़ -पौधे
टेक देती घुटने
सारी दुनिया
वर्षा की मनमानी के आगे।
Dedicated to
सभी काव्य प्रेमियों को
Dedication Summary
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