व्यथा
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, 2022
रेगिस्तान की तरह मैं तपता,
पतझड़ की तरह मैं उजड़ा।
मायूसियों से घिरकर मैं थका,
किसे सुनाऊ अपने दिल की
व्यथा।
असंख्य आँसू मेरे आंखों में,
अथाह वेदना है मेरे दिल मे।
असक्तता मेरे चेहरे के भावों
में झलकता,
किसे सुनाऊ अपने दिल की
व्यथा।
अपने बगिया का मुरझाया मैं
फूल,
लोग समझने लगे है मुझको
शूल।
जी रहा हूं अपने-आप में तन्हा
सा,
किसे सुनाऊ अपने दिल की
व्यथा।
राहें मेरी हो गयी पथहीन,
न जाने कब नर से बन गया
मैं मलीन,
मुखमंडल से मेरे गायब हो
गयी तेजोमय आभा,
किसे सुनाऊ अपने दिल की
व्यथा।
दीप की भांति जिसे दिल में
जलाया,
सावन की बूंदों की तरह एकांत
स्नेह बरसाया।
मिल रहा उनसें मुझे पल-पल
धोखा,
किसे सुनाऊ अपने दिल की
व्यथा।
मौलिक एवं स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
© ® आलोक पाांडेय
गरोठ, मंंदसौर, (मध्यप्रदेश)
तिथि – १३ /०३ /२०२२
फाल्गुन ,शुक्ल पक्ष, दशमी, रविवार।
विक्रम संवत २०७८