वक़्त ठहर जा
0
बहुत की इंतजार तेरा,
तेरा तो कुछ पता ही नहीं
क्यों परेशान करता है मुझको
क्यों इतना है लगाव तुझको मुझसे
बस अब,
वक़्त ठहर जा।
नदी की उस किनारे में मुझे बस छोड़ दे,
वर्षों पहले जहां मैं थी
बहती हुई नदी को देख सीखी जो भी काफी था मेरे लिए,
मेरी हर गुस्ताखियो को कर माफ
इतनी औकात नहीं जो तुझ से कुछ कह पाऊं,
बस अब
वक़्त ठहर जा।
किताबों की दुनिया में मैं खोई थी,
कहां तर्जुबा जिंदगी का,
सब कुछ एक कल्पना सा
जब से तेरी स्कूल में दाखिल हुई हूं
अपनों से मैं दूर हुई हूं
बस अब
वक़्त ठहर जा।
कह दी मैं इन आंखों से मत खोना सपनों में,
कुछ मिले या नहीं
आंखों को बस तकलीफ होगी
बस अब
वक़्त ठहर जा।