सच में औरतें बेहद अजीब होती है..... छोड़ कर अपना घर आंगन, नये घर को वो अपनाती..... रिश्ते नाते सारे पीछे छोड़, नये रिश्तों में वो ढल जाती..... भूल कर अपना अस्तित्व, नये नाम से वो जुड़ जाती..... बहु, पत्नी, और मां बन कर, सरे रिश्ते
डर.....! डर तो मुझे भी लगता है सहमा जीवन जीती हूँ घर से निकलते ही कदमों तले कुचल दी जाती हूँ नहीं हूँ महफुज़ कहीं मैं चींटी की तरह मसल दी जाती हूँ क्या करूँ..... उन दरिन्दों की शैतानी नजर का शिकार मेरा जिस्म बनता है दहल जात
गली-गली में हैवान बैठे है हवस की आग बुझाने को शराफत का चोला ओढ़ खड़े है किस्मत अपनी आजमाने को बहन बेटी देखी नहीं कि वो अपनी असली औकात दिखाते हैं कभी सीटियाँ मारते तो कभी अभद्र टिप्पणियां कर जाते हैं सहमी और डरी हु
सशक्त नारी सफल समाज गूँज रहा है नारा आज सशक्त नारी सफल समाज ब्रह्म्मा को रचनी थी श्रष्टि /ठहर गई नारी पर् दृष्टि तन मन रचा अलौकिक रूप/होने लगी खुशी की वृष्टि सत्यम शिवम सुन्दरं राज़ गूँज रहा है नारा आज नारी बिना न
Nari kyu gumsum khadi hai Dinbhar chalti jaise ghadi hai Tick tick jaise kam ko karti Thak kar jab bhi sone jati Phir kam ki aawaj aati Pura karke use jab wo Aaram karne jab jati Palak japakte subah ho jati kabhi akele wo rahti yu Puche phir na koi yu Kya kush hai wo iss ghar me Ya gam uske bheetar hai yu Saanjh dhale jab sab aate apna kam sabhi de jate Samay koi bita na pate Vyast apne me ho jate Dhyan sabka rakhti wo Uska dhyan koi na rakhte Chup sa koi agar ho ghar me usse khabar lagti hai pahle Pooch poochkar sabko manati Phir bhi akeli rah