ज़िन्दगी।
0रातों को जागते रहना,
ये कैसा मोड़ जिंदगी में आता है,
इक पल लगता है, कोई छू रहा दिल को,
अगले पल सब छू मंतर हो जाता है,
हर शाम एक ही लगती है,
हर दिन यूं ही बीत जाता है,
कभी आते वक्त की चिंता रहती,
कभी बीते किस्सो में मन खो जाता है,
कभी ज़िन्दगी, धूप सी सुनहरी लगती है,
कभी ये आग बन, सब जला जाती है,
कभी नींद आँखो मे नही बसती,
कभी आँखे नींद को तरसाती है,
कभी रिश्ते, दोस्त सहारा लगते है,
कभी ये सूखे सेहरा बन जाते हैं,
कभी खून के रंग गहरे चढ़ते हैं,
कभी ये फीके पड़ जाते हैं,
कभी 'सांसे' रूई सी हल्की लगती,
कभी दिल पर बोझल हो जाती हैं,
कभी लगता थोड़ा और जी लू मै,
कभी तन-ए-बे-जाँ भाती है,
कभी ये मानिंद ए शहंशाह घूमे,
कभी ये फक्कड़ बन जाती है,
कभी ये बुड्ढा बन उपदेश है देती,
कभी ये बच्चा बन जाती है,
अमबालवी सोचे ये जीवन कितना अधूरा,
मरकर कैसे कोई पूरा हो जाता है,
जिसको ताउम्र सुकून न मिलता,
वो कैसे सकून की नींद सो जाता है,
अजब तू और अजब तेरी दुनिया,
कोई कुछ नहीं बता पाता है,
जिसको तू मिल जाए वो हो जाए बेजुबान,
ना मिले जिसको तू, वो तेरी बातें सुनाता है,
बीतती जाती यूं ही राते और जिंदगी लिख लिख कर,
अमबालवी ज़िन्दगी के नग़मे सुनाता है।
