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क्या हुआ जो मसीहा मेरा सर तराश हो गया ?
ख़िताब-ए-शहीदी पे ना
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वो तू नहीं जिसे पेश आदाब किया करते है ,
बाज़ार है हम बस दाम ख़
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देखिये कोई यहाँ, थका, पसीने में चूर है ,
ख़िदमत को हाज़िर दुन
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न मनौती कबूलता है न बद्दुआ का असर नाम का ,
तू ही कह ओ ख़ुदा
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माना कि तेरी ज़िद है चीज़ बड़ी ,
कभी मैं झुक जाऊं तो है चीज़ ब
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शराफत मेरी और उनको हया से काम हो तो जाने दीजिये ,
एक दफ़ा दि
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तेरी आँखे झुकने जब जहां लगेगी ,
मेरे नाम पे तोहमत तब वहां ल
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नागों की रानी
श्याम वर्णा ,काल रात्रि ये नागों की रानी ,
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ज़रा तितली क्या आ बैठी उसके कांधे ,
नादां को देख ख़ुदको गुल
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नई पड़ोसन
ये खबर ताज़ा थी ,अभी है नई जानकारी ,
हाल ही किचन की