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कुछ गीतों का श्रोता कोई न होगा, कुछ अल्फाज़ों को न मिलेगी आ
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होकर अडिग, निश्छल सदा, बढ़ते रहो राष्ट्र पथ पर
चाहे अर्पण ह
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जब नीरस हो हर पल और ठहरा सा हो मन
आँखों से ओझल हो उम्मीदों
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स्वयं का हित छोड़, चलो आज नया विचार करें
स्वार्थ के लिए, व्
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भव्य बनेगा, अद्भुत होगा, होगा राष्ट्रीय अभिमान
अभी बनेगा
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चाहे बना लिए हो देश अनेक, पर राष्ट्र भाव कैसे मिटाओगे
चाह
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प्रचंड खिलेगा फूल कमल, और उछालो कीचड़ कंकर
गूँज रहा हर कौन
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चंचल मन संभाल कर, लक्ष्य लगा आकाश पर
कर विजय निज द्वन्द पर
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चेहकती थी सोने की चिड़ियाँ, आर्यों का था नगर,
सपना आज फिर दे
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प्रबल प्रचंड अद्भुत अभंग, सोने की चिड़ियाँ फिर बसाओ
भारती