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समय फिर करवट बदलेगा।
तूफानों भरी यह रात बीतेगी।
संशय भरी
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कहो ना प्रिय भँवर है।
उड़ान को पंख नहीं है।
दूर-दूर अंबर ऊँ
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सुनसान सी सड़क है,मैं हूं अकेला,सफर जिन्दगी है सपनों का मेल
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उदय हुआ जो पूर्वांचल में, अस्त तो होना है, क्या-क्या खोना ह
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रसभरी तेरे अंग-अंग मद भरे, पिया मोहे प्रीति में भीगो रंग ल
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शोर सा है गली-गली, पहचान बिक रहा है, सम्मान बिक रहा है।
खरी
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आओ फिर से वीरों की गाथा गाएँ।
अमर प्रेम से ओतप्रोत वो संग
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लेकर चल मुझे कहीं,दूर ख्वाब हो अपना सा,दिल की किताब हो अपन
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कब तक मानवता के धैर्य को तौलेगा
कब तक मानवता के धैर्य को
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मुकम्मल सा हिसाब है
मुकम्मल सा हिसाब है इस कदर।
कोई नाम