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"हक मेरी माँ को होता"
मेरी तकदीर में जख्म कोई न होता,
अगर त
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।।।।।।।।।।॥
उसकी खुशी
मेरे मन में कुछ बाते है,
जो शायद उ
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मेरी आँखों से आँसूं गिरे कम से कम,
दो घडी को सुकून तो मिले
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आत्महत्या
इक मनुष्य की आत्मा मिली है इसकी तू हत्
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खुद ही अब इंसाफ करो
उसके हब्सिपन के कारण बस मेरी साँसे टू
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गीत
तू मेरी दिल रुबा,
दिल रुबा दिल रुबा,
क्या करू मैं
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12 12 2015 के फ़िलबदीह से।।
अपनी नजर उठाइ दिवाने बदल गए,
दिख
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।।।।।पहले वाले कविता को एडिट कर के नया रूप दिया और शीर्षक
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आज दीवाली को
मुझे मत बदअम्नी की भीड़ में धकेलो पहले,
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।।अब क्यूँ छोड़ दूँ।।
अब तेरी झूठी कसमे खाना छोड़ दूँ,