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धतूरा
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पथरीली
ऊबड़ खाबड़
उजड़ी भूमि के ऊपर
कूड़ों
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शहर में वर्षा
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उमड़ घुमड़ कर आए बादल
छाए नील गगन में,
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जल
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जल धरती पर ईश्वर का है
मानव को अनुपम वरदान,
जल के बि
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फूल ( सोनेट)
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कितना प्यारा फूल खिला डाली के ऊपर,
रंग रू
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बच्चे
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छल छन्दों से सदा दूर जो
मन के होते बिल्कुल सच्च
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गौरैया
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अन्धाधुन्ध विकास से, गौरैया हैरान।
अपने पूर्
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आओ घर की खिड़की खोलें।
बाहर कितने घर हैं सुन्दर
लोग बसे
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विजय पर्व गणतंत्र दिवस है
नव भारत की नव पहचान,
कोटि कोटि
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खड़े हुए हैं बिना थके ये
रात दिवस हरियाले पेड़,
कितने कि
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लौरी
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आजा री ओ निंदिया रानी
मेरी गुड़िया सुला सुला जा